रोज़ कुछ लिखने-पढ़ने का मन करता है
पर अजीब आपाधापी है
चाह कर भी
कुछ ना कर पाने गम
किस क़दर परेशान करता है
बस वैसे ही परेशान होता हूँ
क्या करूँ?
नहीं होता वक़्त सोलह आने
चवन्नी-अठन्नी सा खर्च होता है
कुछ दफ्तर में,कुछ फोन पर,
कुछ कुछ लोगों को खुश करने को
इस दोहरी ज़िन्दगी में सर फटा-फटा
मुझे ना जाने कितनी गालियां
देता है,
सच है ये मेरी व्यथा है
देर रात घर पहुँच
खुद को पाने की कोशिश में
सर पे ठंडा तेल लगाऊं या
गले में वोडका डालूं
बेसुध होने तक
सर में टाँय-टाँय
शोर का तबला बजता ही रहता है
और बेसुधी के बाद
मन ही मन खुश हो लेता हूँ
कल लिखूंगा के साथ....
काफी कुछ खत्म हो गया
जवाब देंहटाएंइस बीते हुए साल में
ना चाहते हुए भी..
मैं हुं इस हाल में
ये आंसु ये तन्हाई
अमानत है मेरी
क्योकि मैं खुद बिखर गया
एक अनजाने से ख्याल में
काफी कुछ खत्म हो गया
इस बीते हुए साल में
इस तरह वक्त पे पैसो की मेहरवानी होती है । पैसों की तरह वक्त खर्चना वाकई काविले तारीफ है ।
किसे ढूंढ रहा इस दुनिया के वीराने में
जवाब देंहटाएंज़िंदगी यूं ही बीत जाएगी हिसाब लगाने में
जो वक्त और खुशियां चली गयी, वो नहीं मिलेंगी
न चवन्नी अठन्नी में, न सोलह आने में.....
aaja kisi din waqt ko maze me badal dete hai.kaisa hai?
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