तकलीफों को उड़ायेंगे आवारगी में
फिक्र से दूर होने को
दूर हुए जज्बातों से
आवारा बनाया दिक्कतों ने
गर्दन छुपाये मस्ती के रेत में
शुतुरमुर्ग सा
लगने कुछ यूँ लगा है
दबने लगा हूँ खुद किसी
रेत में!
अब कौन आयेगा इस वीराने में
हवाएं सिसकती है,
टीस बिस्तर,तकिये,पलंग से
लेकर खिड़की तक झांकती है
धुंए सी घुली तन्हाई
जाने दर्द है
या तुम्हारी यादें
घुले-घुले कुछ बीते दिन
आज तक इस इस कमरे में
तुम्हारी महक बिखेरते है
तुम्हारे जाने के बाद!