रोज़ कुछ लिखने-पढ़ने का मन करता है
पर अजीब आपाधापी है
चाह कर भी
कुछ ना कर पाने गम
किस क़दर परेशान करता है
बस वैसे ही परेशान होता हूँ
क्या करूँ?
नहीं होता वक़्त सोलह आने
चवन्नी-अठन्नी सा खर्च होता है
कुछ दफ्तर में,कुछ फोन पर,
कुछ कुछ लोगों को खुश करने को
इस दोहरी ज़िन्दगी में सर फटा-फटा
मुझे ना जाने कितनी गालियां
देता है,
सच है ये मेरी व्यथा है
देर रात घर पहुँच
खुद को पाने की कोशिश में
सर पे ठंडा तेल लगाऊं या
गले में वोडका डालूं
बेसुध होने तक
सर में टाँय-टाँय
शोर का तबला बजता ही रहता है
और बेसुधी के बाद
मन ही मन खुश हो लेता हूँ
कल लिखूंगा के साथ....
बुधवार, 30 जून 2010
रविवार, 27 जून 2010
तुम से दुरी का दर्द बह आया था उस दिन गंगा किनारे
पहाड़ नीला हुआ था
हिमालय की वादियाँ थी
गंगा की गूंजती लहरें
किनारे के चबूतरे पर
एक शादी हो रही थी,
काश तुम साथ होती उस दिन
यहाँ दिल्ली की लू से बाहर
पहुंचा था सुबह-सुबह,
गंगा किनारे बद्रीनाथ के करीब
लहराती गंगा के पास
रिसोर्ट के चबूतरे पर
बैठा-बैठा पहाड़ो से लटकते
पेड़ों में तुम्हे ही ढूंढ रहा था
काश उस दिन तुम साथ होती
गंगा के सामने जब दूल्हा
दुल्हन की मांग भर रहा था
दुल्हन ने ऑंखें मुंदी थी
ऐसा लगा जैसे उसने पूरी
कायनात सोंप दी हमसफ़र को
मेरी टक-टकी टूटी
ऑंखें मूँद ली मैने भी
सिहरन हुई थी सर से पैर तक
यूं लगा दूल्हा मैं दुल्हन तुम हो
इसी बीच पहाड़ों को बादलों ने घेरा था
झम-झामा-झम बदरा बरसे
तुम से दुरी का दर्द
बादलों के साथ बह आया था उस दिन
गंगा किनारे!!!!!!!!!!
शनिवार, 19 जून 2010
रावणायण
कल जंगल गया था रावण को देखने,एक सीता मेरे साथ भी थी!जिस सीता को मैने जंगल में देखा उसने रावण को पसंद किया और मेरे साथ जो सीता थी,उसने भी जंगल की वाली सीता के फैसले का समर्थन किया,,और तो और मुझे भी अपने काल की इस सीता के फैसले से अचरज नहीं हुआ!
रावण,रावण ही है उसकी पहचान उसके नाम से ही हो जाता है, नाम का पर्याय है क्रूरता!ये रावन तो हद से ज्यादा क्रूर था!किस निर्दयिता से उसने धोखा देने वाले अपने साथियों के अंग काटे,अपने दुश्मनो को आग में मुर्गे की तरह पका दिया!लेकिन इस रावण की खासियत ये थी की इसके अन्दर दिल था,ये तर्कवादी था,जो सही था उसका समर्थक था,हाँ जो गलत था उसका उग्र और हिंसक विरोधी था!
समय सख्त पथरों के नक्से बादल देता है,हाड़-मांस का बना इन्सान क्या चीज़ है!वो शायद सतयुग था,आज कलयुग है!युग ही बदल गया है,समयांतर आप समझ सकते है!इतने अन्तराल में रावण सदाचारों के मामले में राम के करीब हो गया है और राम लगभग रावन बन गया है वरना ये राम इतना छलिया कैसे होता!---रघुकुल रीति सदा चली आई,प्राण जाई पर वचन ना जाई---ये तो बिलकुल ही उलट गया है!ये राम तो सीता को ही गिरा झूठ बोलता है,रावण तक पहुंचने को!इस राम का मकसद सदाचारी समाज की स्थापना से ज्यादा निजी महत्वाकांछा को किसी भी भी कीमत पे पाना है!
बचपन में रामायण खूब चाव से देखा!कितने प्यारे थे ना राम जी!उनके आभामंडल में हम तीर-धनुष बना राम-राम खेलने लगे!हर बच्चे में राम बनाने की होड़!अब बच्चा होता तो बम के गोलों के साथ खेल में रावण ही बनता!
रावण,रावण ही है उसकी पहचान उसके नाम से ही हो जाता है, नाम का पर्याय है क्रूरता!ये रावन तो हद से ज्यादा क्रूर था!किस निर्दयिता से उसने धोखा देने वाले अपने साथियों के अंग काटे,अपने दुश्मनो को आग में मुर्गे की तरह पका दिया!लेकिन इस रावण की खासियत ये थी की इसके अन्दर दिल था,ये तर्कवादी था,जो सही था उसका समर्थक था,हाँ जो गलत था उसका उग्र और हिंसक विरोधी था!
समय सख्त पथरों के नक्से बादल देता है,हाड़-मांस का बना इन्सान क्या चीज़ है!वो शायद सतयुग था,आज कलयुग है!युग ही बदल गया है,समयांतर आप समझ सकते है!इतने अन्तराल में रावण सदाचारों के मामले में राम के करीब हो गया है और राम लगभग रावन बन गया है वरना ये राम इतना छलिया कैसे होता!---रघुकुल रीति सदा चली आई,प्राण जाई पर वचन ना जाई---ये तो बिलकुल ही उलट गया है!ये राम तो सीता को ही गिरा झूठ बोलता है,रावण तक पहुंचने को!इस राम का मकसद सदाचारी समाज की स्थापना से ज्यादा निजी महत्वाकांछा को किसी भी भी कीमत पे पाना है!
बचपन में रामायण खूब चाव से देखा!कितने प्यारे थे ना राम जी!उनके आभामंडल में हम तीर-धनुष बना राम-राम खेलने लगे!हर बच्चे में राम बनाने की होड़!अब बच्चा होता तो बम के गोलों के साथ खेल में रावण ही बनता!
रविवार, 13 जून 2010
शराब का समंदर,एक टाईटैनिक और हम डूबने वाले
( कल रात टाईटैनिक देखते-देखते कुछ ख्याल आया था )
क्या होता गर शराब का समंदर होता
क्या तब भी तुम डूबने से डरते ?
कम से कम मैं तो नहीं
देखते तुम भी समंदर का रंग
कितना सुर्ख होता
पी- पा के टल्ली समंदर
तुम्हे डूबने कहाँ देता
मौजो की चादर होती प्यारी सी
तुम लेट ही जाते उसपर
डूबने वाले तो हम है ना
टाईटैनिक की कहानी अलग सी बनाते
तब हम मजबूरी में नहीं
जहाज से कूद के शराबी मौजो से
खेलते,
आहा,, कितना मज़ा आता ना
मुझे तो तैरना भी नहीं आता
डूबते-उतराते नाक, मुह, कान
में शराब ही शराब
तब साली मौत भी डरने लगती
कहती ऐसा डूबने वाला पहले नहीं देखा !!!
क्या होता गर शराब का समंदर होता
क्या तब भी तुम डूबने से डरते ?
कम से कम मैं तो नहीं
देखते तुम भी समंदर का रंग
कितना सुर्ख होता
पी- पा के टल्ली समंदर
तुम्हे डूबने कहाँ देता
मौजो की चादर होती प्यारी सी
तुम लेट ही जाते उसपर
डूबने वाले तो हम है ना
टाईटैनिक की कहानी अलग सी बनाते
तब हम मजबूरी में नहीं
जहाज से कूद के शराबी मौजो से
खेलते,
आहा,, कितना मज़ा आता ना
मुझे तो तैरना भी नहीं आता
डूबते-उतराते नाक, मुह, कान
में शराब ही शराब
तब साली मौत भी डरने लगती
कहती ऐसा डूबने वाला पहले नहीं देखा !!!
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