शनिवार, 19 जून 2010

रावणायण

कल जंगल गया था रावण को देखने,एक सीता मेरे साथ भी थी!जिस सीता को मैने जंगल में देखा उसने रावण को पसंद किया और मेरे साथ जो सीता थी,उसने भी जंगल की वाली सीता के फैसले का समर्थन किया,,और तो और मुझे भी अपने काल की इस सीता के फैसले से अचरज नहीं हुआ!
                                                रावण,रावण ही है उसकी पहचान उसके नाम से ही हो जाता है, नाम का पर्याय है क्रूरता!ये रावन तो हद से ज्यादा क्रूर था!किस निर्दयिता से उसने धोखा देने वाले अपने साथियों के अंग काटे,अपने दुश्मनो को आग में मुर्गे की तरह पका दिया!लेकिन इस  रावण की खासियत ये थी की इसके अन्दर दिल था,ये तर्कवादी था,जो सही था उसका समर्थक था,हाँ जो गलत था उसका उग्र और हिंसक विरोधी था!
                                              समय सख्त पथरों के नक्से बादल देता है,हाड़-मांस का बना इन्सान क्या चीज़ है!वो शायद सतयुग था,आज कलयुग है!युग ही बदल गया है,समयांतर आप समझ सकते है!इतने अन्तराल में रावण सदाचारों के मामले में राम के करीब हो गया है और राम लगभग रावन बन गया है वरना ये राम इतना छलिया कैसे होता!---रघुकुल रीति सदा चली आई,प्राण जाई पर वचन ना जाई---ये तो बिलकुल ही उलट गया है!ये राम तो सीता को ही गिरा झूठ बोलता है,रावण तक पहुंचने को!इस राम का मकसद सदाचारी समाज की स्थापना से ज्यादा  निजी  महत्वाकांछा को किसी भी भी कीमत पे पाना है!
                                               बचपन में रामायण खूब चाव से देखा!कितने प्यारे थे ना राम जी!उनके आभामंडल में हम तीर-धनुष  बना राम-राम खेलने लगे!हर बच्चे में राम बनाने की होड़!अब बच्चा होता तो बम के गोलों के साथ खेल में रावण ही बनता!

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