मुझे दर्द को टटोलना है
कहाँ बस्ता है ये?
बदनाम होटल के सीसीटीवी
कैमरे सा हनीमूनी कपलों
को डसता है ये!
ढूँढता हु इसे नब्ज़ में
ज़हन के पुर्ज़े खोल-खोल!
छुपा है मेरे ही अन्दर
चुभन भी होती है,
पर मिलता नहीं
ढूँढू कहाँ मैं डोल-डोल?
कह देता इसे मैं ओश सा
जो खुद ना पर
पत्तों पर दिखता है
पर फर्क बड़ा है इनमे
शीतल ओश सुहाता है
दर्द हमेशा चुभता है!
ना बालों में
ना चमड़ी पे
ना कानो में
आवाज़ ही आती है!
ना आँखों से
नज़र आता है
दिल ढूंढ-ढूंढ दर्द को
थका-मांदा जाता है!
गजब की सोच पाई है आपने।
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मानवता के नाम सलीम खान का पत्र।
इतनी आसान पहेली है, इसे तो आप बूझ ही लेंगे।
अजी गजब की रचना बधाई हो ....
जवाब देंहटाएंDil ko andar tak Chhu gayi yeh kavita
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