बुधवार, 16 दिसंबर 2009

कंकरीट से नहीं आती आज़ादी की गंध!


न जाने किस ख़ुशी के पीछे
मारे हम जाते हैं!
ख़ुशी की खातिर आये यहाँ,
ख़ुशी को तरस हम जाते है!

आज़ादी की गंध सूंघना
किसी बियाबान के
झरने से छन के
आती हवा के झोंको की
खुशबू सी होती है!
तुम्हे मालूम नहीं शायद
बांगर के खेतों के बीच
जो परती होती है
उसमे बरसात का पानी
छोटे छोटे गड्ढों में
कैसे जमा होता है,
उसमें मछलियाँ
गर्दन फुला-फुला
के सूंघती हैं
आज़ादी की गंध!
तुम्हारी चाकरी
तुम्हे ख़ुशी देती है?
१२वी  मंजिल की चाहरदीवारी
जेल की सलाखों सी
नहीं लगती,जहाँ
किसी भी कंकरीट से
नहीं आती
आज़ादी की गंध!

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