देवदार के पार
रविवार, 21 नवंबर 2010
जलो तो आग सा,
भीतर भीतर जलना
गीले उपले सा
खाली धुआं छोड़ता है
सब कुछ धुआं-धुआं
ना कुछ नज़र आये
ना कुछ नतीज़ा
खीझ की खांस और आंखे पानी पानी
अन्दर बस अधजला गोबर
आग को जलने दो ना
आग में सब पाक़ है!
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