किसी पुराने रस्ते
घर गालियों से गुजरते
छुआ छुई होती है
कुछ यादों से
अचानक जैसे पुराने बरतन
से धूल की परतें हटती हैं
स्टील से चमकते है बीते दिन
पुराने ज़ख़्म भी
वक़्त के धूल से भर
दुखते नहीं,अच्छे लगते हैं
ऐसा क्यूँ, ज़ख़्म तो ज़ख़्म हैं
पर शायद फासला
अहमियत बताता है
वरना ज़ख़्म मरहम क्यूँ लगते ?
खुबसूरत अहसास ," वरना जख्मों पर मरहम क्यों कर लगाते" शायद तह टंकन त्रुटी है कुल मिलाकर अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंमेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
जवाब देंहटाएंhttp://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html