मंगलवार, 28 जून 2011

फ्लैशबैक

खुला आकाश देखना 
बरसात में 
बड़े दिनों बाद  हुआ था
आज नॉएडा टोल पर
काले सफ़ेद फ़ाहे से उड़ते बादल
यादों के स्लेट को खुरच-खुरच
कुछ-कुछ ताज़ा करते,
सामने सरपट सी दौड़ती 
ब्लर सड़क और आँखों के 
सामने एकदम वो दिन 
जब हम दोनों सोचा करते थे 
दफ्तर में लुका-छिपी कर,
किसी दिन चलेंगे साथ-साथ 
ऐसे ही बादलों में हाईवे पर 
लम्बी ड्राइव पर !

सोमवार, 6 जून 2011

दौर

 कस्बे की उचाट दोपहरी
सूखी सी,
गीला करने की तरकीब 
और प्रेमचंद का सेवासदन
उसमें बनारस के कोठे की कहानी, 
नयी-नयी जवानी
कभी मन भर आना, 
कभी फंतासी और रवानी,
कहने को तो तो दोपहरी उचाट भी होती 
पर उसमे भी मज़े को ढूँढना 
और पाना....
वो दौर था ...
आज ज़िन्दगी न सिर्फ सुखी सी
बेझिझक उचाट सी 
ना कोई नोवेल ना तरकीब 
खुद ही किताब बन जाना 
जो किसी कोठे की गर्द भरी अलमरी में 
इंतजार करता खुलने का
सुकून  से जी रहा
खुलेगा तो लोग जानेंगे...