मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

ख़ुशी बस ख़याल है!

ख़ुशी क्या ?????

एकांत कमरों की
कानो में गूंजने वाली
सीं सीं की आवाज
या कभी किसी पब
के घोड़ीनुमा कुर्शी पर
टांग लटकाए पीते-पीते
नसों में घुलती आवाज़
धम धम डीजे की!

एक ही चोले के अन्दर
ना जाने कितने इन्सान पाले हैं मैंने
खुशियों की नोचा-नोची
क्नाट प्लेस से सिवान के
गांव तक झूलती
जेठ की धूप में दूर क्षितिज
पर चिलचिलाती चमक
जैसी दूर ही भागे!

बस  ख़याल है!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें