बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

तल्ख़-तल्ख सा एक

क्या तुमने पूछा उससे
तू इतना तल्ख़ क्यों है?
वो चुप चाप यूँ घूमता-फिरता
मर्ज़ी भर के जीता है
अपने हिसाब से
चाहता है ज़िन्दगी ही चले उसके ढर्रे पे
तुम जिसको को कहते हो नाजायज़
वो सब जायज़ है उसके लिए
क्युकी उसने भी तो जायज़ को जायज़ कहा था
तब दबा-दबा के उसकी बातों को
जायज़ को ही नाजायज़ बना दिया
बेचारा भूल गया
जायज़ और नाजायज़ में फर्क!!!