शनिवार, 22 मई 2010

एक नया घर मिला है,दुआवों की ज़रुरत है!

समाचार की दुनिया एक ज़िन्दगी है!इस ज़िन्दगी को जीना पड़ता है!यहाँ अगर जीना नहीं आया तो मौत होती है तिल-तिल कर एड्स की तरह शायद!समाचार से अलग हुए तो समाचार आपसे भागने लगता है!..वो कहावत अपने सुनी है ना अगर आप विद्या से दूर भागोगे तो विद्या आपसे दूर भाग जाएगी...!दरअसल ये कहावत हमें बचपन में सुनने को मिलती थी जब पढ़ने के लिए हमारे परिजन हमें सुनाते थे!इस को मैने समाचार के सन्दर्भ में भी महसूस किया है!
                 तमाम कलेसों  के बीच कई बार को एसा लगता है की जो ये सामान्य जिंदगी है वो समाचार की भिन्न ज़िन्दगी पर भारी पड़ने लगती है!वजह साफ है मैने सामान्य ज़िन्दगी में ही आंखे खोली, पहले रेंगा बाद में खड़ा हुआ और दौड़ने लगा!रिश्तों में उलझा, रिश्ते मुझ पे चढ़ बैठे!या यूँ कहें में माया का हिस्सा हो गया जो अब तक मुझ पर पर भारी है और आखिरी साँस तक यही रहेगा,माया से उबरना  इश्वर के लिए आसान नहीं रहा में तो एक इन्सान हूँ!खैर मुद्दे पर लौटें----हाँ,मैं ये कह रहा था की एक और सामानांतर ज़िन्दगी ने भी मुझे अपने अन्दर समाहित किया!यहाँ बस खबर, खबर, खबर इसी में जियो, इसी में खाओ, इसी में पियो, इसी में जियो, इसी में मरो तब तो ये अपने अन्दर आपको दायरा देती है की आप इस में भी रेंगो चलो और दौड़ो वरना हमेशा के लिए ऑंखें मूँद लो!इस की तासीर सामान्य ज़िन्दगी से जुदा है!इस में माया नहीं है!ये कठोर व्यवहारवाद पर टिकी है!अब अपना क्या बताउं मैने दो ज़िन्दगी जीना आज से काफी पहले आरंभ कर दिया!समाचार की ज़िन्दगी जाना बूझा फिर उसमे चलना फिरना शुरू कर दिया,मज़ा आने लगा लेकिन जहा मज़ा हैं वहां आस-पास कहीं टीस भी बैठी रहती है, मौका मिलते झपटती है!खैर दो ज़िन्दगी में जीना जारी रहा, जब एक में दुखता था तो दुसरे में भागता था!कई बार को मन हुआ की कठोर व्यवहारवादी ज़िन्दगी को छोड़ दूं लेकिन ज़ज्बातों की जकड़न यहाँ भी हो गई सो फैसला किया की दोनों को साथ लेकर चलूँगा!चल भी रहा हूँ,हाँ ये फैसला ज़रूर किया की समाचार की ज़िन्दगी के जिस घर टीस होगी उस घर को छोड़ दूंगा!नए घर में सावधान रहूँगा!एक नया घर मिला है,दुआवों की ज़रुरत है!

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