मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

दर्द--बदनाम होटल का सीसीटीवी


मुझे दर्द को टटोलना है
कहाँ बस्ता है ये?
बदनाम होटल के सीसीटीवी
कैमरे सा हनीमूनी कपलों
को डसता है ये!
ढूँढता हु इसे नब्ज़ में
ज़हन के पुर्ज़े खोल-खोल!
छुपा है मेरे ही अन्दर
चुभन भी होती है,
पर मिलता नहीं
ढूँढू कहाँ मैं डोल-डोल?
कह देता इसे मैं ओश सा
जो खुद ना पर
पत्तों पर दिखता है
पर फर्क बड़ा है इनमे
शीतल ओश सुहाता है
दर्द हमेशा चुभता है!

ना बालों में
ना चमड़ी पे
ना कानो में
आवाज़ ही आती है!
ना आँखों से
नज़र आता है
दिल ढूंढ-ढूंढ दर्द को
थका-मांदा जाता है!

3 टिप्‍पणियां: