रविवार, 6 दिसंबर 2009

कूड़ावाली बच्ची


रोज़ की तरह आज का दिन निकला,वही आफत उठने पर!देर रात का सोना जल्दी जागना बड़ा परेशान कर देता है!ना स्टूडियो में सुकून मिलता है ना घर पे ना बाहर फिर भी खुद को शांत रख बेचैनी की लगाम अपने हाथ में रखता हूँ लेकिन आज इस इतवार कुछ अलग हो गया जो परेशान कर रहा है!
                           सुबह कुछ कपड़े प्रेस कराने थे सो नीचे को आया!प्रेस वाली के पास खड़ा था,वहां बहुत सारे आवारा कुत्ते घूम रहे थे!कुछ छोटे थे,कुछ मोटे थे,कुछ कीड़े पड़े भी थे!वहीँ पास ब्रेड पड़ा था उसे नोच नोच कर खा रहे थे!गली इतनी व्यस्त नहीं थी जितनी अमूमन होती है फिर भी खड़-खड़ करते पुराने स्कूटर सवार कुछ लोग, कुछ बाइक वाले तो कभी कभी कभार रिक्शे पर लक्ष्मी की नगर की सुन्दर लड़कियाँ सड़क से गुज़र रहीं थी!इसी बीच एक स्कूटर वाले का स्कूटर ख़राब हो गया,वो वहीँ बीच सड़क पर किक पे किक पेले जा रहा था,खींझ रहा था!अचानक वो सारे आवारा कुत्ते एक साथ भौंकने लगे थे,मुझे इसमे कुछ खास नहीं लगा!तभी प्रेस वाली मोटी अम्मा अपनी बेटी को बोली!
"देखियो रे उसको खा लिया क्या मुओं ने"
"उसने बोला हा अम्मी रो रही है"
मैंने  भी देखा एक कूड़ा बिनने वाली बच्ची सड़क पे गिरी पड़ी रो रही थी,भी मुझे लगा नाटक कर रही है,लगे भी क्यों ना ये दिल्ली की तमाम रेडलाइट पर भीख मांगने वालों से मैं बड़ा परेशान हूँ,साले सब के सब भीख मंगाते है और जाकर नबी करीम से गांजा-चरस जरूर लेते हैं,खाना खाएं ना खाएं!इस कारण इन सारे भीखमंगो से चिढ हो गई है मुझे!ऐसे में मुझे लगा गिर के नाटक कर रही है काटा-वाटा नहीं कुत्ते ने,ये तो वैसे ही गली में फिरने वाले आवारा कुत्ते हैं डरपोक होते हैं क्या काटेंगे?
इतनी ही देर में वो रोती हुई उठी, इक पुराना घाघरा पहना था उसे उठाया!उसके पैर में खरोंच के साथ कुत्ते का एक दांत घुसने का निशान था!वो रो रही थी,हाँ रोते हुए किसी का परवाह नहीं कर रही थी!उसी गली में एक चाय वाला बैठता है वो आया!
"कहाँ काटा है दिखा मेरे को"
उसने कोई जवाब नहीं दिया!
"चल डॉक्टर के पास ले चलता हूँ"फिर भी कोई जवाब नहीं!
मैं वहीँ प्रेस वाली के पास खड़ा देख रहा था स्वार्थशून्य उसके चेहरे को!कूड़ा बीनने वाली वो बच्ची रो रही थी लेकिन दर्द के अलावा उसके सारे भाव सो रहे थे,चेहरे पे कुछ दिखाई नहीं दे रह था,डॉक्टर से इलाज करवाने का लालच भी नहीं था!जो दिख रहा था वो बिखरे हुए बाल,गन्दगी से अटा उसका शरीर और हाँ उसकी पूरी काया पर ढेर सारी मासूमियत!गली के चलने का सिलसिला भी जारी था!आते-जाते समझा रहे थे!
"तुम डंडी लेके चला करो वरना ये कुत्ते काट खायेंगे"
अब तक चाय वाला गया नहीं था उसको बोल रहा था चल डॉक्टर के पास ले चलता हूँ! इतनी देर तक मेरे अन्दर का एक इन्सान मुझे छोड़ चूका था,जो अकसर बेवजह के फड्डों से मुझे दूर रहने की नसीहत देता है!दूसरा इन्सान सक्रीय था जो कूड़ेवाली के पास तक गया,उस बच्ची का बांह भी पकड़ा और बोला!
"चली जा इसके (चाय वाले)साथ"
तब तक उस से भी छोटा एक भाई वंहा आ गया कुत्तों की भूंक की दहशत से भागा था और बच निकला था!मुझे लगा कूड़े वाली बच्ची शायद रोते रोते उसी को ढूंढ रही थी!अब भाई आया तो वो आवाज़ लगाने लगा एटा,एटा!मैं पूरा तो नहीं पर समझ गया था ये बंगला में बोल रहे हैं,बुला रहा था उधर गली की दूसरी तरफ खड़े एक और भाई को (कुल मिलाकर तीन) पर वो आ नहीं रहा था,जान बचने की जदोज़हद में उसका बोरा छूट गया था,और ऊपर से सांड जैसा मोटा कुत्ता अपने अमले के साथ बोरे के पास ही सुस्ता रहा था!यहाँ भी मेरे अन्दर के दूसरे वाले इन्सान ने थोड़ी हिम्मत दिखाई उसका बोरा पकड़ा और उसको अपने बहन और भाई के पास पहुंचा दिया फिर तीनों को लेकर चाय वाला चला गया!
इधर मेरे अन्दर का पहला इन्सान फिर जागा!
"चल भाई अब तो ये गए तू अपना काम देख!"
लेकिन थोड़ी देर बाद जब सूटेड-बूटेड हो ऑफिस को निकला उसी गली से तो मैं चाय वाले से पूछ बैठा!
"भाई उसको ले गए थे डॉक्टर के पास"
"ना भाईसाब उसको बीस तीस रुपये दे दिए थे मैंने"!

3 टिप्‍पणियां: