सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

ब्लॉगमित्र से मेरी बातचीत

ब्लोगिंग अच्छा है,कम से कम इसी बहाने ही सही,बतियाने का मौका तो मिला!थोड़ी देर पहले खबर पढ़ते-पढ़ते "बेचैनी"(दरअसल अपनी बेचैनी को कविता के सांचे में ढाला),को हमनवा बना अपनी बेचैनी को लोलिपोप चुसाने की कोशिश की!ड्रोपिंग से घर आया तो उतना मन नहीं था दारू पीने का जितना अमूमन होता है फिर भी सोचा की आज दो चार पैग लगा कर लिखा जाये!खैर अभी तक कांच के एक ही लाबब्लब ग्लास को हलक में डाला है,दूसरा आधा ख़त्म हो सामने पड़ा इंतजार कर रहा है मेरे हांथों के लिफ्ट का,मुझमे घुलने-मिलने को बेताब है!बहरहाल बात ब्लोगिंग की हो रही है!अच्छा फील हो रहा है,एक साथी मिला जो तर्क नहीं करता,जो मन में आया उसे इसके बॉडी पे चेप दिया!ठीक साथी इसलिए भी है क्योंकि ये इंसानी फितरत से अलग है,मैं कुछ भी लिख दूँ ,अपने तरीके से जायज़ ठहरा दूँ,टोकता नहीं है की भाई ये क्यों लिख दिया ये तो गलत है वरना इधर तो दारुबाज घनिष्ठ भी तर्क करना नहीं नहीं छोड़ते और हम ठहरे साला ठेठ स्वबात थोपू, अपनी बात ठोक कर रखने वाला या यूँ कहें अपने ही अंदाज़ में जीने वाला!कोई प्राइम मिनिस्टर हो, लाट गवर्नर हो या कुबेर की औलाद जाये मेरे ठेंगे पर सो इस लिहाज़ से तो उत्तम ही लगा!
(दूसरा पैग भी पूरा हुआ दो सिगरेट के साथ)लेकिन बलोड मित्र से बतियाने का मन कर ही रहा है,अलसा नहीं रहा हूँ !भई बात अपने अपने अंदाज़ की हुई है तो ब्लॉग मित्र को अपने अंदाज़ अपनी सोच का कुछ अंश बताते चलूँ -
देख भाई ब्लॉग मित्र,लोग आजकल नंगे नहीं घूमते,गर कोई घूमा तो गली देंगे, मारेंगे,थानेदार लाकअ़प में डाल देगा पर तुझे बताऊँ जब सबके बापों का बाप,जड़ पुरुष इस धरती पर आया होगा तो उसके लिए कपडे कौन बनाया होगा!लंगोट भी नहीं होगी तब शायद शायद तब!घूमता होगा ऐसे ही खुले सांड की तरह!जड़ स्त्री के साथ कभी चुबन तो कभी आलिंगन करता होगा,नतीजे में ये आज का सभ्य मानवों का संसार आ गया लेकिन ये सभ्य नहीं सयाने ज्यादा हुए,कपड़ा पहनना तो सिख लिया!नियम कानून के दायरे में बंध भी गए लेकिन कानून बनाते-बनाते प्रपंची ज्यादा हो गए!ये जितने, अपने आप को सभ्य कहते फिरते है,कानून की आड़ में दूसरे की मारते ज्यादा है!जहाँ ज़रुरत हैं वहां सफाई ऐसे देते हैं जैसे ओबामा के बाप हों और संसार का ठेका इन्ही के पास है!इन्ही में से कुछ निति निर्धारक ऐसा ताना-बाना रचते हैं जिसमे बेचारा इन्सान,इन्सान नहीं रह जाता,दब्बू हो हीनसान में बदल जाता है!अब हीनसन बेचारा करे तो क्या करे,अपनी दमित आत्मा ले कभी चाहरदिवारी में बीवी के साथ दो मिनट का तलातुम मचा सो जाता है या फिर सिस्टम से परेशां गलियां देने में इतना मशगूल हो जाता है कि  बीवी को करवटें बदलता छोड़ जाता है!
खैर में इस बात का हिमायती नहीं हूँ कि तुझे नंगा घूमने के लिए कहूँ,ये गलत होगा लेकिन ये एक प्रतीकात्मक उदाहरण था कि जड़ पुरुष नंगा घूम भी आबाद था और तू सभ्य पुरुष हो कपडे पहन भी बर्बाद है क्योंकि मसला तेरे कपड़े, तेरे जूते,तेरे
सऊर,तेरे अदब का नहीं तेरे मन का है!चल भई तुझे बहुत समझा लिया तू आराम कर क्योंकि तेरे जिस्म पर किबोर्ड से मेने भतेरी खरोंचें दे दीं!आराम करते करते मेरी बातों पर अमल करियो मैं मेरा ग्लास गटक अपने नाखूनों को आराम दूं........गुडनाईट ब्लॉगमित्र !

6 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लागिंग के लिये चियर्स

    मित्र कृपया करके टिप्पणी का पैग पाने लिये अपने वैरीफिकेशन रुपी हाथ को गिलास के उपर से हटा लें ताकि चियर्स के लिये आसानी हो

    जवाब देंहटाएं
  2. मित्रों उम्मीद से ज़्यादा मिला,आप सभी ने हौसला अफज़ाई की,मन गदगद हो गया,दरअसल पत्रकारिता करते करते रवानी-जवानी, मौज़ मस्ती का असल मायने ही भूल गया था,मतलब लेखन रस का आनंद!अमित भाई,शशांक भाई,रजनीश भाई,ललित भाई अपनी यारी जमेगी...आप सभी के ब्लॉग मे तका-झाँकी करता रहूँगा!!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. AAPKE HATH MEIN JO KALAM HAI PRKRITI KA VARDAN HAI. JO KUCHH LIKHA SACH LIKHA. LEKIN YAH SACH KUCHH AUR NIKHAR KAR AANA CHAHIYE. THARRAH NAHIN VILAYTI KI TARAH.

    जवाब देंहटाएं